Ramesh Chand Saini : कौन थे स्वर्गीय रमेश चंद्र सैनी , जानिए !!

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 सैनी परिवार में जन्में श्री Ramesh Chand Saini 'निश्चिंत' जी की पांचवी पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन , श्री रमेश जी का जन्म उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के बेहट कस्बे के निकट एक छोटे से गांव उसन्ड में एक प्रतिष्ठित सैनी परिवार में हुआ था ।

Ramesh Chandra Saini
श्री रमेश चंद्र सैनी जी भारत के प्रसिद्ध कवि 


निश्चिंत जी बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के थे ।

इसी कुशाग्र बुद्धि के चलते श्री रमेश जी भारत के प्रसिद्ध कवि , प्रसिद्ध गीतकार, प्रसिद्ध विद्वान एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक बने , इनकी इतनी तीव्र बुद्धि थी कि किसी भी विषय पर बैठे बैठे कविता बना देते थे, श्री रमेश चंद जी आर्य जगत में ख्याति प्राप्त विद्वान थे और इन्होंने अपने कविताओं और भजनों, गीतों के माध्यम से समाज सुधार में बड़ी भूमिका निभाई है ।


जो इनके भजन सुनता था तो वो मंत्रमुग्ध हो जाता था और सोचने पर मजबूर हो जाता था होता भी क्यों नही , क्योंकि भजन भी इसी तरह बनाते थे कि यूं लगता था कि शब्द रूपी मोतियों की भजन रूपी माला गुंथी हो ।


रमेश जी के बहुत सारे भजन बहुत प्रसिद्ध हुए हैं , जिन्हें बड़े चाव से आज भी गाये और सुने जाते हैं , श्री रमेश जी अपने काव्यों और गीतों को अपने निश्चिंत नाम से लिखा करते थे और वो निश्चिंत जी के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे ।


श्री रमेशचंद निश्चिंत जी समाज को एक नई दिशा देकर 1 सितंबर 2018 को इस नश्वर देह को त्यागकर परलोकगमन कर गए थे , आज निश्चिंत जी का शरीर हमारे बीच नही है पर उनके लिखे काव्यसंग्रह , भजन और गीत आज भी उन्हें जीवंत बनाये हुए है।


उनके लिखे कुछ भजन यहां जोड़ रहे हैं कृपया आनन्द लें।


हमने अपना घर उजाड़ा है सदा ।

अपना ही सब कुछ बिगाड़ा है सदा ।।


1.गैरों को सिर पर बिठाए हम फिरे,

अपनों को हमने लताड़ा है सदा 


2.झाड़ियां ही सींचते रहे उम्र भर,

गुलशन को हमने उखाड़ा है सदा ।


3.औरों का तो हमसे कुछ बिगड़ा नहीं,

अपनों को हमने पछाड़ा है सदा । 


4.शांति के उपदेश औरों को दिये,

अपने घर "निश्चिन्त" खाडा है सदा ।।


गीत (तर्ज़-रहा गर्दिशों में हरदम)                        


करता घमंड क्यूँ है,जीवन का क्या भरोसा ।

पानी का बुलबुला है,इस तन का क्या भरोसा ।। करता.......


1.कितने कुरूप देखे,कितने स्वरूप देखे '

ढलती सी साँझ है ये,यौवन का क्या भरोसा । करता........


2.इस देह रूपी गाडी,में हैं हजारों पुर्जे '

रुक जाये कब कहाँ पर,इंजन का क्या भरोसा । करता.......


3.रहती नहीं हमेशा,मौसम बहार की ये '

पतझड़ भी होगी एक दिन,मधुबन का क्या भरोसा । 


4.सम्मान आज करते,झुक कर के लोग तेरा '

रहे ना रहे ये कल को,इस धन का क्या भरोसा । करता......


5.आई उमड़ घुमड़ कर, "निश्चिन्त" स्याह घटाएँ '

बरसेंगी या नहीं इस,सावन का क्या भरोसा । 

करता घमंड......

       

सैनी समाज के महापुरुष को सैनी न्यूज़ कोटि-कोटि नमन करता है ।

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